भ्रष्टाचार से केवल सीधे तौर पर आहत लोग ही परेशान हों ऐसा नहीं
है, बल्कि भ्रष्टाचार वो सांप है जो उसे पालने वालों को भी नहीं पहचानता।
भ्र्रष्टाचार रूपी काला नाग कब किसको डस ले, इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा
सकता! भ्रष्टाचार हर एक व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा है। अत: हर व्यक्ति
को इसे आज नहीं तो कल रोकने के लिये आगे आना ही होगा, तो फिर इसकी शुरुआत
आज ही क्यों न की जाये?
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इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं कि यदि केन्द्र एवं राज्य सरकारें चाहें
तो देश में व्याप्त 90 फीसदी भ्रष्टाचार स्वत: रुक सकता है! मैं फिर से
दौहरा दूँ कि”हाँ यदि सरकारें चाहें तो देश में व्याप्त 90 फीसदी
भ्रष्टाचार स्वत: रुक सकता है!”शेष 10 फीसदी भ्रष्टाचार के लिये दोषी लोगों
को कठोर सजा के जरिये ठीक किया जा सकता है। इस प्रकार देश की सबसे बडी
समस्याओं में से एक भ्रष्टाचार से निजात पायी जा सकती है।
मेरी उपरोक्त बात पढकर अनेक पाठकों को लगेगा कि यदि ऐसा होता तो
भ्रष्टाचार कभी का रुक गया होता। इसलिये मैं फिर से जोर देकर कहना चाहता
हूँ कि “हाँ यदि सरकारें चाहती तो अवश्य ही रुक गया होता, लेकिन असल समस्या
यही है कि सरकारें चाहती ही नहीं!” सरकारें ऐसा चाहेंगी भी क्यों? विशेषकर
तब, जबकि लोकतन्त्र के विकृत हो चुके भारतीय लोकतन्त्र के संसदीय स्वरूप
में सरकारों के निर्माण की आधारशिला ही काले धन एवं भ्रष्टाचार से रखी जाती
रही हैं। अर्थात् हम सभी जानते हैं कि सभी दलों द्वारा काले धन एवं
भ्रष्टाचार के जरिये अर्जित धन से ही तो लोकतान्त्रिक चुनाव ल‹डे और जीते
जाते हैं।
स्वयं मतदाता भी तो भ्रष्ट लोगों को वोट देने आगे रहता है, जिसका प्रमाण
है-अनेक भ्रष्ट राजनेताओं के साथ-साथ अनेक पूर्व भ्रष्ट अफसरों को भी
चुनावों में भारी बहुमत से जिताना, जबकि सभी जानते हैं की अधिकतर अफसर
जीवनभर भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी लगाते रहते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद
ये ही अफसर हमारे जनप्रतिनिधि बनते जा रहे हैं।मैं ऐसे अनेक अफसरों के बारे
में जानता हूँ जो 10 साल की नौकरी होते-होते एमपी-एमएलए बनने का ख्वाब
देखना शुरू कर चुके हैं। साफ़ और सीधी सी बात है-कि ये चुनाव को जीतने
लिये, शुरू से ही काला धन इकत्रित करना शुरू कर चुके हैं, जो भ्रष्टाचार के
जरिये ही कमाया जा रहा है। फिर भी मतदाता इन्हें ही जितायेगा।
ऐसे हालत में सरकारें बिना किसी कारण के ये कैसे चाहेंगी कि भ्रष्टाचार
रुके, विशेषकर तब; जबकि हम सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार, जो सभी राजनैतिक
दलों की ऑक्सीजन है। यदि सरकारों द्वारा भ्रष्टाचार को ही समाप्त कर दिया
गया तो इन राजनैतिक दलों का तो अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा! परिणाम सामने
है : भ्रष्टाचार देशभर में हर क्षेत्र में बेलगाम दौ‹ड रहा है और केवल
इतना ही नहीं, बल्कि हम में से अधिकतर लोग इस अंधी दौ‹ड में शामिल होने को
बेताब हैं।
‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बनाया जावे।
अधिकतर लोगों के भ्रष्टाचार की दौ‹ड में शामिल होने की कोशिशों के
बावजूद भी उन लोगों को निराश होने की जरूरत नहीं है, जो की भ्रष्टाचार के
खिलाफ काम कर रहे हैं या जो भ्रष्टाचार को ठीक नहीं समझते हैं। क्योंकि आम
जनता के दबाव में यदि सरकार ‘‘सूचना का अधिकार कानून” बना सकती है, जिसमें
सरकार की 90 प्रतिशत से अधिक फाइलों को जनता देख सकती है, तो ‘‘भ्रष्टाचार
उन्मूलन कानून” बनाना क्यों असम्भव है? यद्यपि यह सही है कि ‘‘भ्रष्टाचार
उन्मूलन कानून” बन जाने मात्र से ही अपने आप किसी प्रकार का जादू तो नहीं
हो जाने वाला है, लेकिन ये बात तय है कि यदि ये कानून बन गया तो भ्रष्टाचार
को रुकना ही होगा।
‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बनवाने के लिए उन लोगों को आगे आना होगा जो-
भ्रष्टाचार से परेशान हैं, भ्रष्टाचार से पीड़ित हैं,
भ्रष्टाचार से दुखी हैं,
भ्रष्टाचार ने जिनका जीवन छीन लिया,
भ्रष्टाचार ने जिनके सपने छीन लिये और
जो इसके खिलाफ संघर्षरत हैं।
अनेक कथित बुद्धिजीवी, निराश एवं पलायनवादी लोगों का कहना है कि अब तो
भ्रष्टाचार की गंगा में तो हर कोई हाथ धोना चाहता है। फिर कोई भ्रष्टाचार
की क्यों खिलाफत करेगा? क्योंकि भ्रष्टाचार से तो सभी के वारे-न्यारे होते
हैं। जबकि सच्चाई ये नहीं है, ये सिर्फ भ्रष्टाचार का एक छोटा सा पहलु है।
यदि सच्चाई जाननी है तो निम्न तथ्यों को ध्यान से पढकर सोचें, विचारें
और फिर निर्णय लें, कि कितने लोग भ्रष्टाचार के पक्ष में हो सकते हैं?
अब मेरे सीधे सवाल उन लोगों से हैं जो भ्रष्ट हैं या भ्रष्टाचार के
हिमायती हैं या जो भ्रष्टाचार की गंगा में डूबकी लगाने की बात करते हैं।
क्या वे उस दिन के लिए सुरक्षा कवच बना सकते हैं, जिस दिन-
1. उनका कोई अपना बीमार हो और उसे केवल इसलिए नहीं बचाया जा सके,
क्योंकि उसे दी जाने वाली दवाएँ कमीशन खाने वाले भ्रष्टाचारियों द्वारा
निर्धारित मानदंडों पर खरी नहीं उतरने के बाद भी अप्रूव्ड करदी गयी थी?
2. उनका कोई अपना बस में यात्रा करे और मारा जाये और उस बस की इस
कारण दुर्घटना हुई हो, क्योंकि बस में लगाये गए पुर्जे कमीशन खाने वाले
भ्रष्टाचारियों द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरे नहीं उतरने के बावजूद
अप्रूव्ड कर दिए थे?
3. उनका कोई अपना खाना खाने जाये और उनके ही जैसे भ्रष्टाचारियों
द्वारा खाद्य वस्तुओं में की गयी मिलावट के चलते, तडप-तडप कर अपनी जान दे
दे?
4. उनका कोई अपना किसी दुर्घटना या किसी गम्भीर
बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती हो और डॉक्टर बिना रिश्वत लिये उपचार
करने या ऑपरेशन करने से साफ इनकार कर दे या विलम्ब कर दे और पीड़ित व्यक्ति
बचाया नहीं जा सके?
ऐसे और भी अनेक उदाहरण गिनाये जा सकते हैं।
यहाँ मेरा आशय केवल यह बतलाना है की भ्रष्टाचार से केवल सीधे तौर पर आहत
लोग ही परेशान हों ऐसा नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार वो सांप है जो उसे पालने
वालों को भी नहीं पहचानता। भ्र्रष्टाचार रूपी काला नाग कब किसको डस ले,
इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता! भ्रष्टाचार हर एक व्यक्ति के जीवन के
लिये खतरा है। अत: हर व्यक्ति को इसे आज नहीं तो कल रोकने के लिये आगे आना
ही होगा, तो फिर इसकी शुरुआत आज ही क्यों न की जाये?
उपरोक्त विवरण पढकर यदि किसी को लगता है की भ्रष्टाचार पर रोक लगनी
चाहिये तो ‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बनाने के लिये अपने-अपने क्षेत्र
में, अपने-अपने तरीके से भारत सरकार पर दबाव बनायें। केन्द्र में सरकार
किसी भी दल की हो,लोकतन्त्रान्तिक शासन व्यवस्था में एकजुट जनता की बाजिब
मांग को नकारना किसी भी सरकार के लिये आसान नहीं है।
क्या है? ‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून”
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19.1.ग में प्रदत्त मूल अधिकार के तहत 1993
में शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयन्ती के दिन (26 एवं २7 सितम्बर की रात्री
को) स्थापित एवं भारत सरकार की विधि अधीन दिल्ली से 6 अप्रेल, 1994 से
पंजीबद्ध एवं अनुमोदित‘‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान” (बास) के
राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में लगातार अनेक राज्यों के अनेक क्षेत्रों व
व्यवसायों से जुडे लोगों के साथ कार्य करते हुए और 20 वर्ष 9 माह 5 दिन तक
भारत सरकार की सेवा करते हुए मैंने जो कुछ जाना और अनुभव किया है, उसके
अनुसार देश से भ्रष्टाचार का सफाया करने के लिये ‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन
कानून” बनाना जरूरी है,जिसके लिये केन्द्र सरकार को संसद के माध्यम से
वर्तमान कानूनों में कुछ बदलाव करने होंगे एवं कुछ नए कानून बनवाने होंगे,
जिनका विवरण निम्न प्रकार है :-
1-भ्रष्टाचार अजमानतीय अपराध हो और हर हाल में फैसला 6 माह में हो :सबसे
पहले तो यह बात समझने की जरूरत है कि भ्रष्टाचार केवल मात्र सरकारी लोगों
द्वारा किया जाने वाला कुकृत्य नहीं है, बल्कि इसमें अनेक गैर-सरकारी लोग
भी लिप्त रहते हैं। अत: भ्रष्टाचार या भ्रष्ट आचरण की परिभाषा को बदलकर
अधिक विस्तृत किये जाने की जरूरत है। इसके अलावा इसमें केवल रिश्वत या
कमीशन के लेन-देन को भ्रष्टाचार नहीं माना जावे, बल्कि किसी के भी द्वारा
किसी के भी साथ किया जाने वाला ऐसा व्यवहार जो शोषण, गैर-बराबरी, अन्याय,
भेदभाव, जमाखोरी, मिलावट, कालाबाजारी, मापतोल में गडबडी करना, डराना,
धर्मान्धता, सम्प्रदायिकता, धमकाना, रिश्वतखोरी, उत्पीडन, अत्याचार,
सन्त्रास, जनहित को नुकसान पहुँचाना, अधिनस्थ, असहाय एवं कमजोर लोगों की
परिस्थितियों का दुरुपयोग आदि कुकृत्य को एवं जो मानव-मानव में विभेद करते
हों, मानव के विकास एवं सम्मान को नुकसान पहुंचाते हों और जो देश की
लोकतान्त्रिक, संवैधानिक, कानूनी एवं शान्तिपूर्ण व्यवस्था को भ्रष्ट, नष्ट
या प्रदूषित करते हों को ‘‘भ्रष्टाचार” या “भ्रष्ट आचरण” घोषित किया जावे।
इस प्रकार के भ्रष्ट आचरण को भारतीय दण्ड संहिता में अजमानतीय एवं
संज्ञेय अपराध घोषित किया जावे। ऐसे अपराधों में लिप्त लोगों को पुलिस जाँच
के तत्काल बाद जेल में डाला जावे एवं उनके मुकदमों का निर्णय होने तक,
उन्हें किसी भी परिस्थिति में जमानत या अन्तरिम जमानत या पेरोल पर छोडने का
प्रावधान नहीं होना चाहिये। इसके साथ-साथ यह कानून भी बनाया जावे कि हर
हाल में ऐसे मुकदमें की जाँच 3 माह में और मुकदमें का फैसला 6 माह के अन्दर
किया जावे। अन्यथा जाँच या विचारण में विलम्ब करने पर जाँच एजेंसी या जज
के खिलाफ भी जिम्मेदारी का निर्धारण करके सख्त दण्डात्मक कार्यवाही होनी चाहिये।
बिलकुल रुक सकता हे बस आप साथ दे तो
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