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Tuesday, 31 October 2017

भ्रष्टाचार का उन्मूलन विकास के लिए आवश्यक


  भ्रष्टाचार का उन्मूलन विकास के लिए आवश्यक

 भ्रष्टाचार भारत में एक कड़वा सत्य है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक तथा कच्छ से लेकर नागालैंड तक यह मकडज़ाल जैसा फैला हुआ है। कैंसर की भांति यह हमारे समाज को निरन्तर खोखला करता जा रहा है।
भारतीय संस्कृति व्यक्तिगत शुचिता, नैतिकता तथा कत्र्तव्य परायणता की संवाहक रही है। उस देश में भ्रष्टाचार जैसे शब्द का नाम लेना भी पाप था। भ्रष्टाचार का प्रथम साक्षात्कार चाणक्य के ‘अर्थशास्त्र’ में होता है, जहां उन्होंने भ्रष्टों के लिए कड़े आपराधिक दंड के प्रावधान का सुझाव दिया तथा भ्रष्टाचार द्वारा अर्जित सम्पत्तियों को शासन द्वारा जब्त करने की सलाह दी। लेकिन, चाणक्य के समय इस दंड-व्यवस्था को लागू करने की आवश्यकता नहीं हुई। अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कम्पनी के समय उपहार संस्कृति द्वारा भ्रष्टाचार खूब फला-फूला। यहां तक कि कम्पनी के निदेशकों ने धन लेकर मीर कासिम को मीर जाफर के स्थान पर बंगाल का नवाब बना दिया।
मैकाले ने भारतीय दंड संहिता में रिश्वत या घूस लेने वाले सरकारी सेवक के लिए सन् 1860 में व्यवस्था की, पर भ्रष्टाचार सुरसा के मुंह की भांति बढ़ता ही गया। स्वतंत्र भारत में नई आर्थिक व्यवस्था आई, पर वह लाइसेंसों एवं परमिटों पर आधारित थी। अत: राजनीतिज्ञों, जो विधि के शिकंजे से बाहर थे, ने बहती गंगा में खूब हाथ धोये।
सन् 1990 तक भ्रष्टचार ने देश को खोखला कर दिया। जुलाई 1991 में भारत को इंग्लैंड बैंक में 47 टन सोना गिरवी रखना पड़ा। तब सभी की आंखें खुली तथा तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की शुरूआत हुई। परिणाम उत्तम रहे तथा भारत का विदेशी मुद्रा भंडार शनै: शनै: अप्रत्याशित ऊंचाईयों तक पहुंचता रहा। इसमें योगदान उन मुख्यत: युवा इंजीनियरों तथा पेशेवरों का है, जिन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से विदेशों में जाकर भारत का झंडा गाड़ा। वे ही जब भारत वापस आना चाहते हैं, तो यहां के बढ़े हुए भ्रष्टाचार से डर कर मुंह मोड़ लेते हैं। आज उदार अर्थव्यवस्था में भी भारतीय नौकरशाही द्वारा इतने रोड़े अटकाये जाते हैं, विलंब किया जाता है कि हम प्राय: फिर से लाईसेंस तथा परमीट राज में पहुंच जाते हैं। यह आजकल के वैश्वीकरण युग में चल नहीं सकता। भारत फिर से आर्थिक दौड़ में पिछड़ जाएगा। अत: वर्तमान काल में भ्रष्टाचार से लडऩे के लिए आवश्यक है हमारे तंत्र में चारों ओर व्याप्त विलंब से लडऩा तथा इसके लिए प्रभावी कानून बनाना। यदि तंत्र में सुधार आरम्भ हो गया, तब दूध वाले से लेकर पेपर वाले तक, चालक से लेकर नौकर तक, दूकानदार से लेकर निर्माता तक, वकील से लेकर डॉक्टर तक तथा सिपाही से लेकर मंत्री तक भी सुधार के रास्ते पर चल निकलेंगे।
विकास के लिए भी भ्रष्टाचार को नियंत्रित करना आवश्यक है। स्वतंत्रता के 68 वर्षों के बाद भी यदि हमारी योजनाओं का केवल पन्द्रह प्रतिशत ही लाभार्थी तक पहुंचे तो इससे अधिक भारतीय तंत्र के लिए शर्मनाक और कुछ नहीं है। यही कारण है कि अन्ना हजारे के अगस्त, 2011 में भ्रष्टाचार के विरूद्ध आंदोलन तथा अनशन को प्रथम बार भारत में इतना प्रबल जन समर्थन प्राप्त हुआ। महानगरों से लेकर नगरों तक तथा कस्बों से लेकर गांवों तक अन्ना हजारे के समर्थन में प्रदर्शन हुए। अत: यह भारत के प्रजातंत्र के लिए सबक लेने का क्षण है। जो समय से निर्णय नहीं ले पाते, वे प्रगति की दौड़ में पिछड़ जाते हैं। आजकल तो ऐसे शासकों को संसार में जनता उखाड़ फेंक रही है।
 

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भ्रष्टाचार की बीमारी इतनी खतरनाक है कि इससे किसी का लाभ नहीं होता। जो भ्रष्ट तरीकों से धन अर्जित करता है, वह उसे ऐश तथा दिखावे में खर्च कर देता है, फिर जब उसे अपना काम निकालने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है तो वह परेशान हो जाता है। उसे अपने दैनिक जीवन के खर्चे कम करके घूस देना पड़ता है। यह सभी धन अनुत्पादक कार्यों में लगता है, इससे देश की जीवंत शक्ति दुर्बल होती है। दूसरे मेहनतकश एवं ईमानदार व्यक्ति हताश होते हैं तथा किशोर एवं युवा पीढ़ी में बिना परिश्रम किये बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षाएं उत्पन्न हो जाती हैं। अत: इस खतरनाक बीमारी का तुरंत इलाज करना अत्यन्त आवश्यक है।
भ्रष्टाचार की बीमारी का इलाज    > यदि आप किसी  भ्रष्टाचार की शिकायत करना चाहते हे तो कॉल करे

भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतें टॉल फ्री नं. 1800-11-0180 पर दें
  1. भारतीय दंड संहिता की धाराएं 161, 162, 164, 165 तथा 165(क) अति प्रभावी है, लेकिन इन धाराओं के अंतर्गत मुकदमों में वर्षों का बिलंब हो जाता है। फलत: ये प्रभावहीन हो गई हैं। त्वरित न्यायालयों से कुछ आशाएं बंधी पर वे भी शनै: शनै: न्यायिक प्रक्रिया पद्धति के गुलाम होते जा रहे हैं और उन पर भ्रष्टों तथा उनके अभिवक्ताओं का बोलबाला हो रहा है।
2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 एक उत्तम अधिनियम है, जिसके अंतर्गत भ्रष्ट अधिकारी की सम्पत्ति भी जब्त की जा सकती है, यदि वह उसके घोषित स्रोतों से अधिक हो। लेकिन, ये प्रावधान भी विलंब की प्रक्रिया में खो जाते हैं। इस अधिनियम की धारा 22 के अंतर्गत यदि एक बार अभियोजन आरंभ हो जाता है तो वह स्थगित नहीं हो सकता, परन्तु अदालतें स्थगन पर स्थगन दिये जाती हैं और वकील फीस के लिए स्थगन लिये जाते हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय ने सी.बी.आई. बनाम परमेश्वर मामले (2009), 9 एस.सी.सी. 29 में यह व्यवस्था दी कि यदि चार्जशीट अभियोजन ठीक-ठीक तरह से स्थापित करती है तो सरकार की अनुमति आवश्यक नहीं है। इस अधिनियम के अंतर्गत रिश्वत देने वाला समान रूप से अपराधी है।
  1. केन्द्रीय सरकार में केन्द्रीय सतर्कता आयोग है जो कि केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों में भ्रष्टाचार की रोकथाम तथा उन्हें दंड देने के लिए प्रयासरत है। प्रत्येक मंत्रालय में तथा केन्द्रीय सरकारी उपक्रमों में भी सतर्कता अधिकारी नियुक्त हैं। यहां तक कि बैंकों आदि में भी। फिर भी भ्रष्टाचार की नदी बह रही है, क्योंकि कहीं न कहीं उच्च पदस्थ अधिकारियों तथा मंत्रियों ने इनकी डोर अपने हाथों में ले रखी है। इसी प्रकार राज्यों में भी सतर्कता आयोग है, पर देखा जाता है कि भ्रष्ट अधिकारी स्वतंत्र घूमते रहते हैं। मुख्यमंत्रीगण अपने चहेते अधिकारियों की फाइलें ही नहीं छेड़ते हैं।
  2. इसी प्रकार जांच आयोग अधिनियम, 1952 के अंतर्गत कई भ्रष्टाचार सम्बन्धी जांचे होती हैं, पर उच्चाधिकारियों तथा नेताओं या मंत्रीगणों की सांठ-गांठ के कारण उन पर कार्यवाही नहीं होती और उनकी फाईलें सचिवालयों में धूल फांकती रहती हैं।
  3. फेमा भी है तथा मनी लाउन्डरिंग अधिनियम भी। उनका उत्तम प्रभाव शनै: शनै: सामने आ रहा है। इन समस्याओं से उबरने के लिए केन्द्रीय लोकपाल बिल 1998 द्वारा लोकपाल की नियुक्ति की व्यवस्था थी। सत्रह राज्यों में सर्तकता आयुक्त अथवा लोकायुक्त हैं, पर उनकी रपटों पर पूर्ण कार्यवाही सरकारी अनुमति के बिना नहीं हो सकती। यह लोकपाल बिल केन्द्रीय स्तर पर संसद में प्राय: चालीस वर्षों से लंबित था। यही कारण है कि अन्ना हजारे एवं उनके सहयोगियों ने जन लोकपाल बिल सरकार के सामने रखा पर सरकार इस पर सहमत नहीं हुई। सरकार ने अपनी ओर से संसद में जो बिल पेश किया वह पूर्व बिलों या रिश्वत प्रतिरोधी अधिनियमों की भांति बिना दांतों वाला ही था। अन्ना हजारे के दल ने जो नया विधेयक दिया, उसमें प्रमुख प्रावधान हैं -
क)     प्रशासनिक दुराचार भी दंडनीय है।
ख)     प्रधानमंत्री भी एक ‘सरकारी सेवक’ हैं।
ग)  ‘लोकपाल’ प्रतिष्ठान द्वारा अर्जित दंड, जुर्मानों आदि का दस प्रतिशत लोकपाल प्रतिष्ठान के सुदृढ़ीकरण के उपयोग में लगेगा।
घ)  सेवा के पश्चात लोकपाल प्रतिष्ठान के अध्यक्ष एवं सदस्यगण सरकारी सेवाओं या आयोगों में नहीं जा सकेंगे।
च)  इसमें एक लोकपाल तथा दस सदस्य रहेंगे।
छ)  वे पांच वर्र्ष तक रहेंगे तथा अधिकतम दस वर्र्ष तक सेवा कर सकेंगे।
ज)  लोकपाल एवं सदस्यों की चयन समिति में कोई सरकारी प्रतिनिधि नहीं है। संसद के दोनों सदनों के अध्यक्ष हैं। उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधिपति इस चयन समिति के अध्यक्ष होंगे।
प)  लोकपाल उन सरकारी सेवकों को दंडित कर सकता है या नौकरी से बर्खास्त कर सकता है तथा वरिष्ठ अधिकारियों पर और अधिक दंड लगा सकता है, जबकि पूर्व में संयुक्त सचिव या उससे ऊपर अधिकारी सुरक्षित थे।
फ)  लोकपाल उन ठेकेदारों या जमींन लाभार्थियों के ठेके या जमीन का पट्टा या अधिकार रद्द कर सकता है या संशोधित कर सकता है, जो इस प्रकार के विधि-विरोधी कार्यों में संलिप्त पाए जाते हैं।
ब)  लोकपाल को तलाशी और अभिग्रहण का अधिकार है।
भ)  लोकपाल द्वारा आरम्भिक जांच एक मास के अंदर पूर्ण की जाएगी कि उपर्युक्त सरकारी सेवक के विरूद्ध मामला आगे बढ़ेगा या नहीं।
म)  लोकपाल की संतुष्टि पर सरकार को उतने विशेष न्यायाधीशों को नियुक्त करना होगा, ताकि भ्रष्टाचार सम्बन्धित मामले एक वर्र्ष के अंदर निष्पादित हो सके। यह दु:साध्य कार्य है।
य)  सरकार को सरकारी सेवक के भ्रष्ट आचरण से जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई उसकी सम्पत्तियों से या रिश्वत देने वाली कम्पनियों, यहां तक कि निदेशकों से व्यक्तिगत रूप से की जाएगी।
र)  भ्रश्टाचार के मामलों में दंड पांच वर्ष से आजीवन कारावास तक हो सकता है। संयुक्त सचिव से ऊपर अधिकारियों तथा मंत्रियों को कम से कम दस वर्ष की सजा होगी। इसी प्रकार रिश्वत देने वाले के लिए भी दंड का प्रावधान है।
तथाकथित जन लोकपाल बिल एक उत्तम विधेयक है। यदि इसमें निहित नागरिक घोषणा-पत्र के अनुसार नागरिक की शिकायत का पंद्रह दिन में समाधान हो या उत्तर मिले, तो यह अत्यन्त सराहनीय होगा। वर्तमान परिवेश में यह अत्यन्त कठिन है।
यह ऐतिहासिक सत्य है कि वर्षों से ठंडे बस्ते में पड़े भ्रष्टाचार निरोधी अधिनियम को अन्ना हजारे के अप्रैल, 2011 के आन्दोलन के दवाब में भारतीय संसद को पास करना पड़ा। इस आन्दोलन का पुरजोर समर्थन वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, वित्तमंत्री अरूण जेटली तथा लालकृष्ण आडवाणी ने किया था, पर आज भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। अत: यह विश्लेष्ण आवश्यक है कि वर्तमान सरकार इस दिशा में क्या कदम उठा रही है अथवा क्या भारत के सभी राजनीतिक दल एक जैसे हैं जो निर्वाचित होने के पश्चात  जनता को किये गये मुख्य वायदे भी भूल जाते हैं और परम्परागत प्रशासन चलाते रहते हैं।
अधिनियम का उद्देश्य: यह अधिनियम 1 जनवरी, 2014 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के साथ ही भारतीय संघ का कानून बन गया तथा सम्पूर्ण भारतीय इसके अनुपालन के लिए बाध्य हो गये। राष्ट्रपति की इस नये वर्ष की सौगात से जनता को आशा बंधी कि देश में भ्रष्टाचार मुक्त नया विहान होगा, पर प्रक्रिया के पचड़े में पड़कर इस अधिनियम में 1 जनवरी, 2015 तक संशोधन ही होते रहे। अधिनियम का उद्देश्य था कि देश में साफ-सुथरी तथा उत्तरदायी सरकार होगी तथा लोकपाल जैसी प्रभावशाली संस्था के माध्यम से देश में भ्रश्टाचार के कारनामों को रोका जायेगा तथा उन्हें दंडित किया जायेगा।
अधिनियम के मुख्य-मुख्य प्रावधान
  1. लोकपाल के कार्यालय में एक अन्वेषण निदेशक की नियुक्ति होगी, जो एक लोकसेवक द्वारा भ्रष्टाचार निरोध अधिनियम 1988 के अंतर्गत किये गये अपराधों की प्रारम्भिक जांच करेगा।
  2. लोकपाल के अंतर्गत एक अभियोजन शाखा रहेगी, जो विशेष न्यायालयों में लोकसेवकों के विरूद्ध मुकदमें दायर करेगी तथा उनकी पैरवी करेगी।
  3. क्षेत्राधिकार:
  4.  
 भ्रष्टाचार से संबंधित शिकायतें पर भी कर सकते हे
(क) अंर्तराष्ट्रीय सम्बन्धों, बाहरी एवं आन्तरिक सुरक्षा, कानून-व्यवस्था, पारमाण्विक शक्ति तथा अंतरिक्ष के मामलों को छोड़कर प्रधानमंत्री भी।
(ख) सभी ग्रुप ए तथा बी के अधिकारी।
(ग) सभी गु्रप सी तथा डी के कर्मचारी।
(घ) सभी केन्द्रीय सरकार के उपक्रमों एवं संस्थाओं के अधिकारी एवं कर्मचारी।
(ड़) उन सभी समूह अथवा निधियों के निदेशक, प्रबन्धक या सचिव जिन्हें सरकार से अनुदान प्राप्त है एवं जिन्हें विदेशों से योगदान प्राप्त होता है। इस प्रकार स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) भी लोकपाल के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आते हैं।
(च) जो लोग रिश्वत देते हैं या देने में सहायता या षडयंत्र करते हैं।
  1. यदि लोकपाल यह निर्णय लेता है कि विशिष्ठ जांच हो तो वह अपनी जांच-पड़ताल शाखा को अथवा सीबीआई को प्राम्भिक जांच के लिए आदेश दे सकता है।
  2. यदि लोकपाल प्रारम्भिक जांच को आगे बढ़ाने का निर्णय लेता है तो ग्रुप-ए तथा ग्रुप-बी के अधिकारियों के विरूद्ध इस प्रारम्भिक निर्णय पर केन्द्रीय सर्तकता आयोग के विचार मांग सकता है।
  3. ग्रुप सी तथा गु्रप डी के कर्मचारियों के विरूद्ध केन्द्रीय सतर्कता आयोग, केन्द्रीय सर्तकता आयोग अधिनियम 2003 के अंतर्गत कार्यवाही करेगा।
  4. ये जांचे 60 दिन के अंदर पूरी की जायेंगी।
  5. लोकपाल से आये हुए मुकदमों की सुनवाई के लिए केन्द्रीय सरकार, लोकपाल की आवश्यकतानुसार आवश्यक संख्या में विशेष न्यायलय गठित करेगी।
  6. प्रत्येक सरकारी नौकर या लोकसेवक 31 मार्च को प्रत्येक वर्र्ष अपनी एवं अपने परिवार की सम्पत्तियों का विवरण विभाग की वेबसाईट पर देगा।
  7. जो व्यक्ति लोकपाल के सामने झूठी शिकायत करता है उसे एक वर्ष का कारावास तथा एक लाख रूपये तक का दंड हो सकता है। यह प्रावधान एनजीओ तथा ट्रस्ट के लिए भी समान रूप से प्रयोज्य है।
  8. एक वर्ष के भीतर सभी राज्य अपने राज्य में लोकायुक्त की नियुक्तियां करेंगे।
रिश्वत लेने, अनुप्रेरित करने या देने के लिए किसी भी व्यक्ति की भ्रष्टाचार अवरोधक अधिनियम के अंतर्गत कम से कम 6 महीने तथा अधिक से अधिक पांच वर्र्ष तक की सजा तथा जुर्माना हो सकता है।
  1. यदि कोई लोकसेवक के पास उसकी आमदनी के स्रोतों से अधिक सम्पत्तियां पाई जाती हैं या वह एक आदतन रिश्वत लेता है तो उसे सात वर्ष की कैद एवं जुर्माना हो सकता है।
  2. लोकपाल यदि आरम्भिक जांच में किसी लोकसेवक को दोषी पाता है तो उसे स्थानान्तरित या निलम्बित करने के लिए सिफारिशें कर सकता है।
  3. यदि विशेष न्यायालय प्रथम दृष्टया किसी लोकसेवक को दोषी पाता है तो उसकी सम्पत्तियां या रिश्वत से प्राप्त धन को जब्त करवा सकता है। जबकि लोकपाल भी यदि संतुष्ट हो, तो वह भी स्वयमेव इन सम्पत्तियों को अपने कब्जे में ले सकता है।
अधिनियम का कार्यान्वयन: भारतीय जनता के स्वप्नों की लोकपाल संस्था को निहित स्वार्थों ने जन्म ही नहीं लेने दिया। लोकपाल एवं सदस्यों की नियुक्ति के लिए धारा 4 में एक सात सदस्यीय खोजबीन समिति बनाई गई, जो लोकपाल एवं सदस्यों की सिफारिश करेगी। इसमें सर्तकता सम्बन्धी मामलों के विशेषज्ञों का प्रावधान था। उस समिति में एक न्यायविद् तथा उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश थे, जिन्होंने खोजबीन समिति की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। उस खोजबीन एवं नियुक्ति समिति में यह प्रावधान नहीं था कि कोई पद खाली होने पर क्या होगा। फलत: खोजबीन समिति ही अप्रभावी हो गई तो लोकपाल एवं सदस्यों की नियुक्ति अधर में लटक गई। एक वर्ष में फिर लोकपाल और तथा अन्य सम्बन्धित अधर में लटक गई। एक वर्ष में फिर लोकपाल और लोकायुक्त तथा अन्य सम्बन्धित विधि (संशोधन) विधेयक, 2014 लाया गया। अब यह संसद से पास होकर राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए जायेगा। राष्ट्रपति के अनुमोदन के पश्चात संशोधन सम्बन्धी अधिसूचना जारी होगी। तत्पश्चात ही वह संशोधन प्रभावशाली होगा एवं एक वर्र्ष बाद लोकपाल अधिनियम, 2013 के कार्यान्वयन का पथ प्रशस्त होगा।
कोई भी अधिनियम पूर्ण नहीं होता। उसके कार्यान्वयन के बाद ही इसमें कमियां पता चलती हैं तथा उनको क्रमश: दूर किया जा सकता है। इसका अर्थ यह नहीं कि उस अधिनियम का कार्यान्वयन ही रोक दिया जाये। इस अधिनियम के कार्यान्वयन में काफी काम बाकी है। अब तो लोकपाल के कार्यालय को स्थापित करने के लिए खोज शुरू होगी। फिर कार्यालय को सजाने-संवारने तथा कर्मचारियों के आने में अपना समय लगेगा। इसी बीच इसकी स्थापना को लेकर कुछ भ्रष्टाचार समर्थक शक्तियां उच्चतम न्यायलय या उच्च-न्यायालय में इसकी संवैधानिक वैधानिकता को लेकर लोकहित वाद दायर करेंगी। आशा है कि उन्हें स्थगन आदेश नहीं मिलेगा, अन्यथा यह संस्था स्थापित न होकर न्यायालयों की फाईलों में ही दब जायेगी। उसके पश्चात जनता अपनी भड़ास निकालने के लिए हजारों शिकायतों या मामला दायर करेगी जिससे यह संस्था शुरू होने के पूर्व ही शिकायतों के बोझ से दब जायेगी तथा उसके विभिन्न पीठें यह शिकायत करती दृष्टिगोचर होंगी कि वे कैसे काम करे, जैसा कि उपभोक्ता फोरम एवं उपभोक्ता अपील न्यायालय आज भी कर रहे हैं तथा जनता के दु:ख का निवारण करना भूल गये हैं। विशेष न्यायालयों का गठन तो एक अत्यन्त टेढ़ी खीर है। इसके लिए उच्च न्यायालय की अनुमति चाहिए तथा न्यायाधीश कुछ महीनों में नहीं बनाये जा सकते हैं। अधिनियम में यह भी व्यवस्था थी कि सभी राज्य सरकारें अपने राज्य में लोकायुक्तों की नियुक्तियां एक वर्ष के भीतर करेंगी, पर आज भी कई राज्य सरकारें, जैसे कि पंजाब ने अपने यहां लोकायुक्त  की नियुक्तियां नहीं की हैं। उन राज्यों के विरूद्ध क्या कार्यवाही हुई? लोकसेवकों की सम्पत्तियों का विवरण एकत्रित करना एवं विभाग अथवा मंत्रालयों के वेबसाइटों पर प्रकाशित करना एक आसान काम था, क्योंकि वरिष्ठ लोकसेवक जैसे क आईएएस तथा अन्य भारतीय सेवा के अधिकारी एवं केन्द्रीय सेवा अधिकारी, वर्षों से अपनी सम्पत्तियों का विवरण दे रहे थे पर यह काम भी न हो सका एवं सक्षम अधिकारी को निर्दिष्ट सूचना प्रकाशित करने का अधिकार देना पड़ा।
सारांश
इस अधिनियम से जनता को बड़ी आशाएं हैं, क्योंकि यह अधिनियम उनके देशव्यापी एकजुटता तथा आन्दोलन का ही यह परिणाम था। भ्रष्टचार को हटाने के लिए भी जनता ने मोदी सरकार को अपना जनादेश दिया था। जनता नहीं चाहती कि भ्रष्टाचार जैसी विकराल समस्या से निबटने वाली संस्था केन्द्रीय सर्तकता आयोग तथा केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की भांति सरकार की मुखापेक्षी हो। राजनीतिक आकाओं ने भी उच्चाधिकारियों की डोर अपने हाथ में ले रखी थी तथा उनकी अनुमति के बिना राज्य में सचिव एवं केन्द्र में संयुक्त सचिव के विरूद्ध कार्यवाही करना सम्भव नहीं था। भारत में भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे चलता है, जो अब नीचे असाध्यय बीमारी की भांति फैल चुका है। अत: इस अधिनियम में सभी को सम्मिलित कर लिया गया है। यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी। साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि इससे जो अनिर्णय की स्थिति उत्पन्न हो वह भी भ्रष्टाचार की भांति दंडित हो। लोकसेवक का कर्तव्य है निर्णय लेना। यदि वह निर्णय नहीं ले सकता तो उसे पद छोड़ देना चाहिए। न्यायालयों के प्रशासनिक अधिकारी तो न्यायाधीश नहीं हैं। वे भी न्यायालयों में चपरासियों, बाबुओं आदि के भ्रष्टाचार के लिए दोषी हैं। उन्हें भी इस अधिनियम के अन्तर्गत आना चाहिए।

Saturday, 16 September 2017

और मोर मर गया

उपदेश अवस्थी-

शहर और गांव के बीच एक घंना जंगल था. इस जंगल में एक मोर बड़े मजे से रहता था. उसके पंख बड़े लम्बे थे इसलिए वह बहुत खूबसूरत था. जब कभी वह भोजन की तलाश में खेतों की ओर जाता तो किसान उसे कभी नहीं भगाते, क्योंकि वे उसकी खूबसूरती को पसंद करते थे, लेकिन फिर भी भोजन की तलाश में तो उसे रोज निकलना ही पड़ता था.
एक दिन एक ग्रामीण जंगल से गुजरा, उसके हाथ में कुछ कीड़े और सांप के बच्चे थे. मोर ने उससे पूछा किया वह कहां जा रहा है. ग्रामीण ने बताया कि वह बाजार जा रहा है जहां वह इन कीड़ों और सांप के बच्चों को बेच देगा, इससे जो धन प्राप्त होगा उससे वह मोर के पंख खरीदेगा. मोर के पंखों को आसपास के गांव में बेचकर वह व्यापार करेगा.
मोर ने कहा कि मैं भोजन की तलाश में भटकता हूं और तुम पंखों की तलाश में भटक रहे हो.

corruption can stop! 90 percent

रुक सकता है 90 फीसदी भ्रष्टाचार!

  भ्रष्टाचार से केवल सीधे तौर पर आहत लोग ही परेशान हों ऐसा नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार वो सांप है जो उसे पालने वालों को भी नहीं पहचानता। भ्र्रष्टाचार रूपी काला नाग कब किसको डस ले, इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता! भ्रष्टाचार हर एक व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा है। अत: हर व्यक्ति को इसे आज नहीं तो कल रोकने के लिये आगे आना ही होगा, तो फिर इसकी शुरुआत आज ही क्यों न की जाये?
https://bhsteem.blogspot.in/

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इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं कि यदि केन्द्र एवं राज्य सरकारें चाहें तो देश में व्याप्त 90 फीसदी भ्रष्टाचार स्वत: रुक सकता है! मैं फिर से दौहरा दूँ कि”हाँ यदि सरकारें चाहें तो देश में व्याप्त 90 फीसदी भ्रष्टाचार स्वत: रुक सकता है!”शेष 10 फीसदी भ्रष्टाचार के लिये दोषी लोगों को कठोर सजा के जरिये ठीक किया जा सकता है। इस प्रकार देश की सबसे बडी समस्याओं में से एक भ्रष्टाचार से निजात पायी जा सकती है।

हा रुक सकता हे रुक सकता है 90 फीसदी भ्रष्टाचार!

भ्रष्टाचार से केवल सीधे तौर पर आहत लोग ही परेशान हों ऐसा नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार वो सांप है जो उसे पालने वालों को भी नहीं पहचानता। भ्र्रष्टाचार रूपी काला नाग कब किसको डस ले, इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता! भ्रष्टाचार हर एक व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा है। अत: हर व्यक्ति को इसे आज नहीं तो कल रोकने के लिये आगे आना ही होगा, तो फिर इसकी शुरुआत आज ही क्यों न की जाये?

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इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं कि यदि केन्द्र एवं राज्य सरकारें चाहें तो देश में व्याप्त 90 फीसदी भ्रष्टाचार स्वत: रुक सकता है! मैं फिर से दौहरा दूँ कि”हाँ यदि सरकारें चाहें तो देश में व्याप्त 90 फीसदी भ्रष्टाचार स्वत: रुक सकता है!”शेष 10 फीसदी भ्रष्टाचार के लिये दोषी लोगों को कठोर सजा के जरिये ठीक किया जा सकता है। इस प्रकार देश की सबसे बडी समस्याओं में से एक भ्रष्टाचार से निजात पायी जा सकती है।
मेरी उपरोक्त बात पढकर अनेक पाठकों को लगेगा कि यदि ऐसा होता तो भ्रष्टाचार कभी का रुक गया होता। इसलिये मैं फिर से जोर देकर कहना चाहता हूँ कि “हाँ यदि सरकारें चाहती तो अवश्य ही रुक गया होता, लेकिन असल समस्या यही है कि सरकारें चाहती ही नहीं!” सरकारें ऐसा चाहेंगी भी क्यों? विशेषकर तब, जबकि लोकतन्त्र के विकृत हो चुके भारतीय लोकतन्त्र के संसदीय स्वरूप में सरकारों के निर्माण की आधारशिला ही काले धन एवं भ्रष्टाचार से रखी जाती रही हैं। अर्थात् हम सभी जानते हैं कि सभी दलों द्वारा काले धन एवं भ्रष्टाचार के जरिये अर्जित धन से ही तो लोकतान्त्रिक चुनाव ल‹डे और जीते जाते हैं।
स्वयं मतदाता भी तो भ्रष्ट लोगों को वोट देने आगे रहता है, जिसका प्रमाण है-अनेक भ्रष्ट राजनेताओं के साथ-साथ अनेक पूर्व भ्रष्ट अफसरों को भी चुनावों में भारी बहुमत से जिताना, जबकि सभी जानते हैं की अधिकतर अफसर जीवनभर भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी लगाते रहते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद ये ही अफसर हमारे जनप्रतिनिधि बनते जा रहे हैं।मैं ऐसे अनेक अफसरों के बारे में जानता हूँ जो 10 साल की नौकरी होते-होते एमपी-एमएलए बनने का ख्वाब देखना शुरू कर चुके हैं। साफ़ और सीधी सी बात है-कि ये चुनाव को जीतने लिये, शुरू से ही काला धन इकत्रित करना शुरू कर चुके हैं, जो भ्रष्टाचार के जरिये ही कमाया जा रहा है। फिर भी मतदाता इन्हें ही जितायेगा।
ऐसे हालत में सरकारें बिना किसी कारण के ये कैसे चाहेंगी कि भ्रष्टाचार रुके, विशेषकर तब; जबकि हम सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार, जो सभी राजनैतिक दलों की ऑक्सीजन है। यदि सरकारों द्वारा भ्रष्टाचार को ही समाप्त कर दिया गया तो इन राजनैतिक दलों का तो अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा! परिणाम सामने है : भ्रष्टाचार देशभर में हर क्षेत्र में बेलगाम दौ‹ड रहा है और केवल इतना ही नहीं, बल्कि हम में से अधिकतर लोग इस अंधी दौ‹ड में शामिल होने को बेताब हैं।

‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बनाया जावे।

अधिकतर लोगों के भ्रष्टाचार की दौ‹ड में शामिल होने की कोशिशों के बावजूद भी उन लोगों को निराश होने की जरूरत नहीं है, जो की भ्रष्टाचार के खिलाफ काम कर रहे हैं या जो भ्रष्टाचार को ठीक नहीं समझते हैं। क्योंकि आम जनता के दबाव में यदि सरकार ‘‘सूचना का अधिकार कानून” बना सकती है, जिसमें सरकार की 90 प्रतिशत से अधिक फाइलों को जनता देख सकती है, तो ‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बनाना क्यों असम्भव है? यद्यपि यह सही है कि ‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बन जाने मात्र से ही अपने आप किसी प्रकार का जादू तो नहीं हो जाने वाला है, लेकिन ये बात तय है कि यदि ये कानून बन गया तो भ्रष्टाचार को रुकना ही होगा।
‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बनवाने के लिए उन लोगों को आगे आना होगा जो-
भ्रष्टाचार से परेशान हैं, भ्रष्टाचार से पीड़ित हैं,
भ्रष्टाचार से दुखी हैं,
भ्रष्टाचार ने जिनका जीवन छीन लिया,
भ्रष्टाचार ने जिनके सपने छीन लिये और
जो इसके खिलाफ संघर्षरत हैं।
अनेक कथित बुद्धिजीवी, निराश एवं पलायनवादी लोगों का कहना है कि अब तो भ्रष्टाचार की गंगा में तो हर कोई हाथ धोना चाहता है। फिर कोई भ्रष्टाचार की क्यों खिलाफत करेगा? क्योंकि भ्रष्टाचार से तो सभी के वारे-न्यारे होते हैं। जबकि सच्चाई ये नहीं है, ये सिर्फ भ्रष्टाचार का एक छोटा सा पहलु है।
यदि सच्चाई जाननी है तो निम्न तथ्यों को ध्यान से पढकर सोचें, विचारें और फिर निर्णय लें, कि कितने लोग भ्रष्टाचार के पक्ष में हो सकते हैं?
अब मेरे सीधे सवाल उन लोगों से हैं जो भ्रष्ट हैं या भ्रष्टाचार के हिमायती हैं या जो भ्रष्टाचार की गंगा में डूबकी लगाने की बात करते हैं। क्या वे उस दिन के लिए सुरक्षा कवच बना सकते हैं, जिस दिन-
1. उनका कोई अपना बीमार हो और उसे केवल इसलिए नहीं बचाया जा सके, क्योंकि उसे दी जाने वाली दवाएँ कमीशन खाने वाले भ्रष्टाचारियों द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरी नहीं उतरने के बाद भी अप्रूव्ड करदी गयी थी?
2. उनका कोई अपना बस में यात्रा करे और मारा जाये और उस बस की इस कारण दुर्घटना हुई हो, क्योंकि बस में लगाये गए पुर्जे कमीशन खाने वाले भ्रष्टाचारियों द्वारा निर्धारित मानदंडों पर खरे नहीं उतरने के बावजूद अप्रूव्ड कर दिए थे?
3. उनका कोई अपना खाना खाने जाये और उनके ही जैसे भ्रष्टाचारियों द्वारा खाद्य वस्तुओं में की गयी मिलावट के चलते, तडप-तडप कर अपनी जान दे दे?
4. उनका कोई अपना किसी दुर्घटना या किसी गम्भीर बीमारी के चलते अस्पताल में भर्ती हो और डॉक्टर बिना रिश्वत लिये उपचार करने या ऑपरेशन करने से साफ इनकार कर दे या विलम्ब कर दे और पीड़ित व्यक्ति बचाया नहीं जा सके?
ऐसे और भी अनेक उदाहरण गिनाये जा सकते हैं।
यहाँ मेरा आशय केवल यह बतलाना है की भ्रष्टाचार से केवल सीधे तौर पर आहत लोग ही परेशान हों ऐसा नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार वो सांप है जो उसे पालने वालों को भी नहीं पहचानता। भ्र्रष्टाचार रूपी काला नाग कब किसको डस ले, इसका कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता! भ्रष्टाचार हर एक व्यक्ति के जीवन के लिये खतरा है। अत: हर व्यक्ति को इसे आज नहीं तो कल रोकने के लिये आगे आना ही होगा, तो फिर इसकी शुरुआत आज ही क्यों न की जाये?
उपरोक्त विवरण पढकर यदि किसी को लगता है की भ्रष्टाचार पर रोक लगनी चाहिये तो ‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बनाने के लिये अपने-अपने क्षेत्र में, अपने-अपने तरीके से भारत सरकार पर दबाव बनायें। केन्द्र में सरकार किसी भी दल की हो,लोकतन्त्रान्तिक शासन व्यवस्था में एकजुट जनता की बाजिब मांग को नकारना किसी भी सरकार के लिये आसान नहीं है।
क्या है? ‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून”
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19.1.ग में प्रदत्त मूल अधिकार के तहत 1993 में शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयन्ती के दिन (26 एवं २7 सितम्बर की रात्री को) स्थापित एवं भारत सरकार की विधि अधीन दिल्ली से 6 अप्रेल, 1994 से पंजीबद्ध एवं अनुमोदित‘‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान” (बास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में लगातार अनेक राज्यों के अनेक क्षेत्रों व व्यवसायों से जुडे लोगों के साथ कार्य करते हुए और 20 वर्ष 9 माह 5 दिन तक भारत सरकार की सेवा करते हुए मैंने जो कुछ जाना और अनुभव किया है, उसके अनुसार देश से भ्रष्टाचार का सफाया करने के लिये ‘‘भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून” बनाना जरूरी है,जिसके लिये केन्द्र सरकार को संसद के माध्यम से वर्तमान कानूनों में कुछ बदलाव करने होंगे एवं कुछ नए कानून बनवाने होंगे, जिनका विवरण निम्न प्रकार है :-
1-भ्रष्टाचार अजमानतीय अपराध हो और हर हाल में फैसला 6 माह में हो :सबसे पहले तो यह बात समझने की जरूरत है कि भ्रष्टाचार केवल मात्र सरकारी लोगों द्वारा किया जाने वाला कुकृत्य नहीं है, बल्कि इसमें अनेक गैर-सरकारी लोग भी लिप्त रहते हैं। अत: भ्रष्टाचार या भ्रष्ट आचरण की परिभाषा को बदलकर अधिक विस्तृत किये जाने की जरूरत है। इसके अलावा इसमें केवल रिश्वत या कमीशन के लेन-देन को भ्रष्टाचार नहीं माना जावे, बल्कि किसी के भी द्वारा किसी के भी साथ किया जाने वाला ऐसा व्यवहार जो शोषण, गैर-बराबरी, अन्याय, भेदभाव, जमाखोरी, मिलावट, कालाबाजारी, मापतोल में गडबडी करना, डराना, धर्मान्धता, सम्प्रदायिकता, धमकाना, रिश्वतखोरी, उत्पीडन, अत्याचार, सन्त्रास, जनहित को नुकसान पहुँचाना, अधिनस्थ, असहाय एवं कमजोर लोगों की परिस्थितियों का दुरुपयोग आदि कुकृत्य को एवं जो मानव-मानव में विभेद करते हों, मानव के विकास एवं सम्मान को नुकसान पहुंचाते हों और जो देश की लोकतान्त्रिक, संवैधानिक, कानूनी एवं शान्तिपूर्ण व्यवस्था को भ्रष्ट, नष्ट या प्रदूषित करते हों को ‘‘भ्रष्टाचार” या “भ्रष्ट आचरण” घोषित किया जावे।
इस प्रकार के भ्रष्ट आचरण को भारतीय दण्ड संहिता में अजमानतीय एवं संज्ञेय अपराध घोषित किया जावे। ऐसे अपराधों में लिप्त लोगों को पुलिस जाँच के तत्काल बाद जेल में डाला जावे एवं उनके मुकदमों का निर्णय होने तक, उन्हें किसी भी परिस्थिति में जमानत या अन्तरिम जमानत या पेरोल पर छोडने का प्रावधान नहीं होना चाहिये। इसके साथ-साथ यह कानून भी बनाया जावे कि हर हाल में ऐसे मुकदमें की जाँच 3 माह में और मुकदमें का फैसला 6 माह के अन्दर किया जावे। अन्यथा जाँच या विचारण में विलम्ब करने पर जाँच एजेंसी या जज के खिलाफ भी जिम्मेदारी का निर्धारण करके सख्त दण्डात्मक कार्यवाही होनी चाहिये।
बिलकुल रुक सकता हे  बस आप साथ दे तो

आप का अपना दोस्त
नवीन शर्मा

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आप का नवीन शर्मा 
सुजाव या शिकायत के लिए हमारे कान्टेक्ट फॉर्म पर लिखे 
और इस hron  को सभी दोस्तों को बोले usse करने के लिए 
थैंक्स

Monday, 11 September 2017

FACEBOOK WHATSAPP PAR CHAT KARNE WALO KA LOCATION KAISE PATA KARNA HE TO PADE PURA ..?

or is prakar ki sabhi new update ke liye aap hamare website ko subscribe karna na bhule 
jarur kare or new update pade jinse aap ka gk badega or koi sikayat he to aapna comenct jarur likhe


social media ek aysa platform hai jis par bahut sare logo se online bat kar sakte hai,or kuch ke bare me hume kuch bhi nahi pata hota hai. whatsapp facebook par
aapki friends list me ayse dost bhi ho jinke bare me aap bilkul bhi nahi jante ho, ya fake usse bhi ho sakta hai so aaj mai aapko aysa tarika batane ja raha hun jiski madat se aap
se chat kar raha he usska location pata kar sakte ho.

ha aap ne sahi padha he yes aapface book ya whatsapp ki help se kisi ki bhi location track kar sakte ho. bas iske liye aapko ye simpale tricks follow karni hai

step 1: sabse pahle aap apne computer ya laptop me chal rahi sabhi aaps ya software band kar de or sirf facebook ya whatsapp  jiska bhi location aap dekhna chahte he vo open kare baki sab band kar de


step 2:  ab keywords me windows+r button press kare or search box me

CMD type karke enter dabaye.

Step 3 : ab jo window aapke samne khulegi ussme type kare netstat -a -n -0
Karke enter par click kare ,

 step 4 ab aapke samne us person ka ip address aa jayega jisse aap chat kar
rahe the is ip address ko note kar le


step 5 ab aap http://www.ip-tracker.org/ site par ja kar isse yah jan sakte he ki vah kaha ka rahne wala he abhi ki location me hai 


aap ka doste 
naveen sharma

01-Dec-18

new update

अगली खबर जल्द ही अपलोड की जाएगी

windows activat karna ka tarika

 Hello Friends  aaj hum windows ko active karne ka tarika batane ja rahe he jo bahut hi aashan he or bina kisi software ke kar sakte he ,  d...

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